आदमी को वक़ार मिल जाए
आदमी को वक़ार मिल जाए
गर जबीं को ग़ुबार मिल जाए
किस को पर्वा रहे मसाइब की
फ़िक्र को गर निखार मिल जाए
आदमियत का हुस्न है वो शख़्स
जिस को उन का शिआ'र मिल जाए
इक तमन्ना बड़े दिनों से है
लैली-ए-कू-ए-यार मिल जाए
वो बड़ा ख़ुश-नसीब है जिस को
लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार मिल जाए
इक ज़रा सोचिए तो होगा क्या
गर जुनूँ को क़रार मिल जाए
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