दिल में मेरे हर घड़ी दरिया-ए-ग़म लबरेज़ है
दिल में मेरे हर घड़ी दरिया-ए-ग़म लबरेज़ है
बात जो मुँह से निकलती है वो दर्द-आमेज़ है
ज़ब्त करता हूँ तो बढ़ता है मिरा सोज़-ए-दरूँ
अश्क से भी अपने डरता हूँ कि तूफ़ाँ-ख़ेज़ है
पहले इन आँखों से सैल-ए-अश्क होता था रवाँ
अब वुफ़ूर-ए-ग़म से मेरी चश्म-ए-तर ख़ूँ-रेज़ है
आरज़ू तक हो गई दिल के लिए बार-ए-गराँ
ना-तवानी के सबब अरमाँ भी हसरत-ख़ेज़ है
है अबस सामान-ए-फ़रहत ग़म-ज़दा दिल के लिए
मेरे लब को ख़ुद तबस्सुम से बड़ा परहेज़ है
दिन गए तफ़रीह के जब से हुआ दिल ग़म-कदा
क्या ग़रज़ हम को अगर दुनिया तरब-अंगेज़ है
इस ज़मीं पर कर रहा है तय मसाफ़त हर-नफ़स
वो मुबारक है क़दम जिस का सफ़र में तेज़ है
क़ल्ब-ए-'हाफ़िज़' ता-दम-ए-आख़िर न पाएगा सुकूँ
जुमला-सामान-ए-तरब-अंगेज़ वहशत-ख़ेज़ है
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