आश्ना-ए-दर्द तू ऐ ख़ूगर-ए-इशरत नहीं
आश्ना-ए-दर्द तू ऐ ख़ूगर-ए-इशरत नहीं
लज़्ज़त-ए-ग़म के बराबर दूसरी लज़्ज़त नहीं
क़द्र-ओ-क़ीमत दिल की है जब तक है इस में मौज-ए-दर्द
जिस में रंग-ओ-बू उस गुल की कुछ वक़अत नहीं
नाला-ए-शब-गीर हो पुर-जोश हो तूफ़ान-ए-अश्क
अब्र-ए-बाराँ की भी इस के सामने क़ीमत नहीं
लुत्फ़-ए-दर्द-ए-दिल से तो है बे-ख़बर ऐ चारागर
इस जहाँ में इस से बढ़ कर दूसरी ने'मत नहीं
ये जिगर बाक़ी है ग़म की मेहमानी के लिए
दिल सुबुक-ख़ातिर है इस में ख़ून की रंगत नहीं
दिल दिया है जिस को वाइ'ज़ है हमें उस की तलाश
हूर-ए-जन्नत से शनासाई नहीं उल्फ़त नहीं
दौलत-ए-दुनिया-ए-दूँ सरचश्मा-ए-अफ़्कार है
बादशाही को फ़क़ीरी से कोई निस्बत नहीं
ज़ीस्त में मेरी कमी थी इक ग़म-ए-जाँ-काह की
मिल गया क़िस्मत से वो भी अब कोई हसरत नहीं
हो गया अफ़्सोस 'हाफ़िज़' ना-मुराद-ए-आरज़ू
ढूँढता है और कहीं तस्कीन की सूरत नहीं
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