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तसव्वुर में ये कौन आया ज़बाँ पर किस का नाम आया - मोहम्मद उस्मान आरिफ़ कविता - Darsaal

तसव्वुर में ये कौन आया ज़बाँ पर किस का नाम आया

तसव्वुर में ये कौन आया ज़बाँ पर किस का नाम आया

नशात-ए-रूह का हर इक नफ़स ले कर पयाम आया

वफ़ूर-ए-बे-खु़दी में एक ऐसा भी मक़ाम आया

न दुनिया मेरे काम आई न मैं दुनिया के काम आया

अक़ीदत से जबीं झुक झुक गई राह-ए-मोहब्बत में

जहाँ उन का ख़याल आया जहाँ उन का मक़ाम आया

ज़माने को तो दुनिया-भर की ख़ुशियाँ बख़्श दीं तू ने

मिरे हिस्से में आया भी तो सोज़-ए-ना-तमाम आया

रहा कुछ होश भी बाक़ी तो उन के हुस्न-ए-ज़ेबा का

अगर आया तो लब पर बे-ख़ुदी में उन का नाम आया

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-हस्ती ग़लत ठहरे

जहाँ की गर्दिशें ठहरीं जहाँ गर्दिश में जाम आया

निगाहों पर जमाल-ए-दोस्त पर्दा बन के छाता है

सँभलना देखना 'आरिफ़' बड़ा मुश्किल मक़ाम आया

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