रह गई वो निगाह-ए-नाज़ क़ल्ब ओ जिगर में बैठ कर
रह गई वो निगाह-ए-नाज़ क़ल्ब ओ जिगर में बैठ कर
दिल में लतीफ़ सी ख़लिश आँख है आँसुओं से तर
रात की नींद उड़ गई दिन का सुकून लुट गया
तेरी निगाह-ए-नाज़ ने कर दिया दिल पे क्या असर
सुन न सके उसी को वो कह न सका उसी को मैं
ऐश की दास्ताँ में जो हाल था ग़म का मुख़्तसर
शाख़ से गुल जो गिर पड़ा दिल से लगा के रख लिया
दौर-ए-ख़िज़ाँ भी देख लूँ फूल चुने हैं उम्र भर
कोई अगर निहाल है कोई ख़राब-हाल है
ज़र्फ़ के साथ साथ है उन की निगाह का असर
रंग-ए-चमन को देख कर 'आरिफ़'-ए-ख़स्ता-दिल ये क्या
फूलों पे है कभी नज़र काँटों पे है कभी नज़र
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