देखा था किस नज़र से तुम ने हँसी हँसी में
देखा था किस नज़र से तुम ने हँसी हँसी में
इक दर्द-ए-मुस्तक़िल है अब मेरी ज़िंदगी में
काबा भी बुत-कदा भी है राह-ए-बंदगी में
ये मंज़िलें हैं कैसी दुश्वार आशिक़ी में
ऐ दोस्त याद उन की अब तक रुला रही है
दो दिन जो मिल गए थे हँसने को ज़िंदगी में
इक बात पर हमारी उलझन में पड़ गए तुम
दुनिया न जाने क्या क्या करती है दोस्ती में
जब होश में रहा मैं छुपते रहे वो मुझ से
पर्दे हटा दिए सब देखा जो बे-ख़ुदी में
ऐ मेरी शाम-ए-फ़ुर्क़त यूँ दिल नहीं बहलता
कुछ और रौशनी कर तारों की रौशनी में
मंज़िल पे मुझ को ला कर दामन झटक रहे हो
याद आएगा मुझे ये एहसान ज़िंदगी में
दौर-ए-ख़िज़ाँ से अब तो बहला रहा हूँ दिल को
काँटों में फँस गया हूँ फूलों की दोस्ती में
तू उन के सामने हो वो तेरे सामने हों
ऐसा भी एक सज्दा 'आरिफ़' हो बे-ख़ुदी में
(608) Peoples Rate This