बहर-ए-हस्ती से भी जी घबरा गया

बहर-ए-हस्ती से भी जी घबरा गया

बे-कसी बस अब किनारा आ गया

कम हुआ करते हैं ऐसे ख़ुश-नसीब

तुझ पे मर कर जिन को जीना आ गया

मेरा मिट जाना तमाशा था कोई

आप से ये किस तरह देखा गया

दुख बुरे दिल की कहानी कुछ न पूछ

फूल के हँसने पे रोना आ गया

सुब्ह करना शाम-ए-ग़म का अल-अमाँ

शम्अ' को दाँतों पसीना आ गया

ख़ुश रहो तुम चल बसा बीमार-ए-ग़म

उम्र-भर की उलझनें सुलझा गया

राह-ए-उल्फ़त में है मरना ज़िंदगी

दर्द मंज़िल तक मुझे पहुँचा गया

मौसम-ए-गुल भी है आँखों में ख़िज़ाँ

दिल ही क्या बैठा चमन मुरझा गया

वो हुए क्या आँख से 'आरिफ़' निहाँ

सारी दुनिया में अँधेरा छा गया

(693) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Bahr-e-hasti Se Bhi Ji Ghabra Gaya In Hindi By Famous Poet Mohammad Usmaan Arif. Bahr-e-hasti Se Bhi Ji Ghabra Gaya is written by Mohammad Usmaan Arif. Complete Poem Bahr-e-hasti Se Bhi Ji Ghabra Gaya in Hindi by Mohammad Usmaan Arif. Download free Bahr-e-hasti Se Bhi Ji Ghabra Gaya Poem for Youth in PDF. Bahr-e-hasti Se Bhi Ji Ghabra Gaya is a Poem on Inspiration for young students. Share Bahr-e-hasti Se Bhi Ji Ghabra Gaya with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.