बहर-ए-हस्ती से भी जी घबरा गया
बहर-ए-हस्ती से भी जी घबरा गया
बेकसी बस अब किनारा आ गया
कम हुआ करते हैं ऐसे ख़ुश-नसीब
तुझ पे मर कर जिन को जीना आ गया
मेरा मिट जाना तमाशा था कोई
आप से ये किस तरह देखा गया
दुख भरे दिल की कहानी कुछ न पूछ
फूल के हँसने पे रोना आ गया
सुब्ह करना शाम-ए-ग़म का अल-अमाँ
शम्अ को दाँतों पसीना आ गया
ख़ुश रहो तुम चल बसा बीमार-ए-ग़म
उम्र भर की उलझनें सुलझा गया
राह-ए-उल्फ़त में है मरना ज़िंदगी
दर्द मंज़िल तक मुझे पहुँचा गया
मौसम-ए-गुल भी है आँखों में ख़िज़ाँ
दिल ही क्या बैठा चमन मुरझा गया
वो हुए क्या आँख से 'आरिफ़' निहाँ
सारी दुनिया में अँधेरा छा गया
(509) Peoples Rate This