बैठे हैं
जो मय-ख़ाने में साक़ी की जगह ख़रकार बैठे हैं
तो मस्जिद में भी मौलाना अज़ाबुन्नार बैठे हैं
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे कहाँ जाएँ
यहाँ लठ-मार बैठे हैं वहाँ लठ मार बैठे हैं
ये मकतब है यहाँ तिफ़्लान-ए-दिल-अफ़गार बैठे हैं
हज़ारों बार उट्ठे हैं हज़ारों बार बैठे हैं
तलाश-ए-इल्म की ऐसी सज़ा दी है मोअल्लिम ने
नहीं उठने की ताक़त क्या करें नाचार बैठे हैं
कलब है इस में कुछ ख़ूबान-ए-खुशबू-दार बैठे हैं
ख़ुदा रक्खे फ़रंगी दौर के आसार बैठे हैं
गुनाह-ए-बा-सलीक़ा कर के कहते हैं ये आपस में
ग़नीमत है कि हम-सूरत यहाँ दो चार बैठे हैं
ये दफ़्तर है यहाँ अफ़सर बने तलवार बैठे हैं
बिचारे मातहत चाक़ू पे रखे धार बैठे हैं
सहर से शाम तक चलती रही है चाय पर चाय
न ये बे-कार बैठे हैं न वो बे-कार बैठे हैं
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