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शुऊ'र-ए-होश से बेगाना कह दिया होता - मोहम्मद सिद्दीक़ साइब टोंकी कविता - Darsaal

शुऊ'र-ए-होश से बेगाना कह दिया होता

शुऊ'र-ए-होश से बेगाना कह दिया होता

ज़रा सी बात थी दीवाना कह दिया होता

हुई ये ख़ैर न देखा मिरी तरफ़ वर्ना

निगाह-ए-शौक़ ने अफ़्साना कह दिया होता

अगर न होतीं इन आँखों की मस्तियाँ मख़्सूस

तो आम लोगों ने मय-ख़ाना कह दिया होता

कहा हर एक ने मुझ को तुम्हारा दीवाना

कभी तो तुम ने भी दीवाना कह दिया होता

मिरे सबब से ज़माने का क्यूँ लिया इल्ज़ाम

है आदमी कोई दीवाना कह दिया होता

ये वाक़िआ है अगर शहर में न होते तुम

तो मैं ने शहर को वीराना कह दिया होता

न बढ़ती बात मोहब्बत में इस क़दर 'साइब'

जो उस ने अपनों में बेगाना कह दिया होता

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