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जाने क्या चेहरे की अब हालत हुई - मोहम्मद सिद्दीक़ साइब टोंकी कविता - Darsaal

जाने क्या चेहरे की अब हालत हुई

जाने क्या चेहरे की अब हालत हुई

आईना देखे हुए मुद्दत हुई

आँसुओं तक दिल ने पहुँचा दी ख़बर

राज़दारी बाइस-ए-शोहरत हुई

कर लिए रौशन वहीं दिल के चराग़

राह में हाइल जहाँ ज़ुल्मत हुई

जाम का क्या ज़िक्र टूटे साज़ तक

इक फ़क़ीह-ए-शहर से हुज्जत हुई

याद ने हर ज़ख़्म ताज़ा कर दिया

ख़ुद ख़लिश अपनी जगह लज़्ज़त हुई

हम रहे बेदार उन की याद में

उन को अपने ख़्वाब से निस्बत हुई

पूछता था कौन तेरे शहर में

पाँव की ज़ंजीर से इज़्ज़त हुई

देख कर उन की नवाज़िश बे-कराँ

आज 'साइब' अर्ज़ की हिम्मत हुई

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