आख़िरी हिचकी पे है नश्शे की साग़र जागा
आख़िरी हिचकी पे है नश्शे की साग़र जागा
प्यास को नींद जब आई तो समुंदर जागा
रात भी दिन की तरह मेरी परेशाँ गुज़री
मैं न जागा तो मिरे ख़्वाब का पैकर जागा
एक आहट सी अचानक हुई दिल को महसूस
किसी देरीना तमन्ना का मुक़द्दर जागा
सुब्ह होते ही ख़ुदा जाने चला जाए किधर
रात-भर शाख़ पे इस ग़म में गुल-ए-तर जागा
थरथराने लगे क्यूँ शीश-महल आप से आप
क्या किसी टूटे मकाँ का कोई पत्थर जागा
लौट आए वही आवारा-ओ-गुम-गश्ता ख़याल
आँख खुलते ही नज़ारों का समुंदर जागा
छोड़ आया था जो मैं पिछले जनम में 'साइब'
ज़ेहन में आज उन अरमानों का लश्कर जागा
(609) Peoples Rate This