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गर्मी - मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल कविता - Darsaal

गर्मी

सर्दी गुज़री गर्मी आई

साथ में अपने हलचल लाई

गर्म हवा हर-सू चलती है

सूरज से धरती जलती है

इंसानों का हाल बुरा है

हैवानों में हश्र बपा है

झुलस रहे हैं पेड़ और पौदे

पिघल रहे हैं बर्फ़ के तोदे

सूख गए हैं नद्दी नाले

पड़ गए सब की जान के लाले

उतरा हुआ है सब का चेहरा

घर के बाहर लू का ख़तरा

ढूँड रहा है हर इक साया

गर्मी ने इतना गर्माया

ठंडा पानी लस्सी शर्बत

बढ़ गई इन से सब की चाहत

लेमूँ का रस आम का पत्ता

खाते हैं सब शौक़ से गन्ना

पंखा तेज़ी से चलता है

जिस्म मगर फिर भी जलता है

सब की ज़बाँ पर पानी पानी

भेज दे मौला बरखा-रानी

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