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आवाज़ें - मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल कविता - Darsaal

आवाज़ें

मियाऊँ मियाऊँ बोले बिल्ली

में-में में-में बोले बकरी

चिड़िया बोले चूँ-चूँ चूँ-चूँ

कुत्ता बोले भौं-भौं भौं-भौं

टें-टें टें-टें तोता बोले

सब के कानों में रस घोले

कोयल बोले कू-कू कू-कू

कूक में इस की है जादू

काएँ काएँ कर के कव्वा

कान पकाता है सब का

मेंडक टर-टर टर-टर बोले

फिर पानी में कूदे उछले

शेर दहाड़ें जब मारे

चिंघाड़ें हाथी सारे

ढेचू-ढेचू की आवाज़

है ये गधों का भोंडा साज़

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