जिस की आँखों में कोई रंग-ए-शनासाई न था
जिस की आँखों में कोई रंग-ए-शनासाई न था
उस से मिलने का मिरा दिल भी तमन्नाई न था
हम दयार-ए-ग़ैर में कहते रहे हैं दिल की बात
एक अपने शहर ही में इज़्न-ए-गोयाई न था
जज़्बा-ए-दिल के बहक जाने से रुस्वा हो गए
कूचा-ए-महबूब वर्ना कू-ए-रुसवाई न था
ज़ुल्मत-ए-शब को जहाँ नूर-ए-सहर कहते थे लोग
मेरा सच कहना सज़ावार-ए-पज़ीराई न था
दाद भी देता न था वो मेरे जज़्ब-ए-शौक़ की
ख़ामुशी आँखों में लब पर हर्फ़-ए-गोयाई न था
तेरी बे-मेहरी न थी कोताही-ए-क़िस्मत भी थी
कार-ज़ार-ए-दिल में वर्ना शौक़-ए-पस्पाई न था
मेरी अपनी ज़ात ही इक अंजुमन से कम न थी
इस लिए 'सज्जाद' मुझ को ख़ौफ़-ए-तन्हाई न था
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