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न तेशा हम ने देखा है न जू-ए-शीर देखी है - मोहम्मद नक़ी रिज़वी असर कविता - Darsaal

न तेशा हम ने देखा है न जू-ए-शीर देखी है

न तेशा हम ने देखा है न जू-ए-शीर देखी है

मगर हाँ कुछ तो जज़्ब-ए-इश्क़ में तासीर देखी है

हर इक शय में नज़र आने लगी है आप की सूरत

न जाने किस नज़र से आप की तस्वीर देखी है

कहाँ से लाएगा वो क़ैस-ओ-लैला का भरम ऐ दिल

ये माना तू ने हुस्न-ओ-इश्क़ की तस्वीर देखी है

पलट जाएगी ख़ुद ज़ोर-ए-क़यामत अपना दिखला कर

अगर बर्क़-ए-तपाँ ने हिम्मत-ए-ता'मीर देखी है

हमारी ख़ाक-ए-मरक़द हर तरफ़ गुलशन में बिखरा दो

कि हम ने दिल-जलों की ख़ाक में इक्सीर देखी है

सितम-दीदा निगाहें कह रही हैं वाहिमा होगा

जो मैं ने इक शगुफ़्ता ख़्वाब की ता'बीर देखी है

न जाने आज-कल क्या हो गया है 'अस्र' को हमदम

गुज़ारिश जो भी होती है बहुत दिल-गीर देखी है

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