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न सर-निगूँ न ब-ज़ाहिर उदास उदास चले - मोहम्मद नक़ी रिज़वी असर कविता - Darsaal

न सर-निगूँ न ब-ज़ाहिर उदास उदास चले

न सर-निगूँ न ब-ज़ाहिर उदास उदास चले

अजीब शान से मरने वफ़ा-शनास चले

बना के ख़ूगर-ए-एहसास-ए-दर्द-ओ-ग़म-ए-दिल को

हमारे पास से सारे हुजूम-ए-यास चले

सुना के अहल-ए-जुनूँ को बहार का मुज़्दा

हवास वाले भी इक सम्त बद-हवास चले

हयात नाम है ऐसे सफ़र का ऐ हमदम

क़दम क़दम पे जहाँ फ़िक्र-ए-आस-ओ-यास चले

ज़बाँ पे आए तो डर है बने न अफ़्साना

वो बात जिस पे बहुत हर तरफ़ क़यास चले

हमारी दल्क़-नवाज़ी पे रश्क करने को

सुना है दैर-ओ-हरम से नज़र-शनास चले

मज़ा तो जब है बहारों की फ़ैज़-ओ-बख़्शिश का

कि 'अस्र' जाम भी बे-अर्ज़-ओ-इलतिमास चले

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