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फूलों को तबस्सुम की अदा तुझ से मिली है - मोहम्मद मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा कविता - Darsaal

फूलों को तबस्सुम की अदा तुझ से मिली है

फूलों को तबस्सुम की अदा तुझ से मिली है

गुलशन को जुनूँ-ख़ेज़ हवा तुझ से मिली है

ऐ ख़ुल्द-नज़र जान-ए-चमन रूह-ए-बहाराँ

शबनम को ये नमनाक ज़िया तुझ से मिली है

बज़्म-ए-मह-ओ-अंजुम को भी ऐ शाहिद-ए-राना

ये नूर से भरपूर फ़ज़ा तुझ से मिली है

गुलगूँ लब-ओ-रुख़्सार के सदक़े में शफ़क़ को

ये रंग की दौलत ब-ख़ुदा तुझ से मिली है

उस रु-ए-ज़िया-बार पे ये अब्र का घूंगट

बिजली को यक़ीनन ये हया तुझ से मिली है

साक़ी तिरी आँखों की क़सम साग़र-ए-मय को

ये कैफ़ियत-ए-होश-रुबा तुझ से मिली है

ऐ दोस्त तेरी नीम-निगाही के तसद्दुक़

दिल को ख़लिश-ए-रूह-फ़ज़ा तुझ से मिली है

कौनैन के हर राज़ को महरम जिसे कहिए

'मंशा' को वही फ़िक्र-ए-रसा तुझ से मिली है

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