Ghazals of Mohammad Mansha Ur Rahman Khan Mansha
नाम | मोहम्मद मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा |
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अंग्रेज़ी नाम | Mohammad Mansha Ur Rahman Khan Mansha |
ज़ीस्त में रंग भर गई आख़िर
यूँ तो यूसुफ़ से हसीं और जवाँ थे पहले
तूफ़ाँ नज़र में है न किनारा नज़र में है
सूरत-ए-बर्क़-ए-तपाँ शो'ला-फ़गन उठ्ठे हैं
सोज़-ए-ग़म चीज़ है क्या कुछ हमें मा'लूम तो हो
शरीक-ए-सोज़-ए-दरूँ जब से हो गए अल्फ़ाज़
फूलों को तबस्सुम की अदा तुझ से मिली है
मोहब्बत का क़रीना आ गया है
जिगर को चाक कि दिल को लहू लहू कीजे
जगह जगह से शिकस्ता हैं ख़म हैं दीवारें
इश्क़ को बार-ए-ज़िंदगी न कहो
हम ने माना हमें बर्बाद करेगी दुनिया
गुल ज़ख़्म को आँसू को गुहर हम ने कहा है
फ़स्ल-ए-गुल की है आबरू हम से
दिल को हर ऐश से बेगाना बना कर छोड़ा
दिल को बख़्शा सोज़-ओ-गुदाज़
दर्द से जान चुराते हुए डर लगता है
चाह की तुम से इल्तिजा की है
ब-नाम-ए-इश्क़ ग़म-ए-मो'तबर ज़रूरी है
अश्क-ए-ग़म शोरिश-ए-पिन्हाँ की ख़बर देते हैं