उजड़े हुए हैं शहर के दीवार-ओ-दर न जा
उजड़े हुए हैं शहर के दीवार-ओ-दर न जा
दिल की रिवायतें हैं बड़ी मो'तबर न जा
पहना न ख़्वाहिशों को लिबास-ए-बरहनगी
शब की मसाफ़तों में ब-रंग-ए-सहर न जा
कुछ देर और गर्मी-ए-बाज़ार देख ले
ले कर हुजूम-ए-हसरत-ए-नज़ारा घर न जा
हाँ मैं शिकस्ता-दिल हूँ मगर आइना तो हूँ
तू अपना रंग देख मिरे हाल पर न जा
वो भी तो आएगा सर-ए-मैदान-ए-आरज़ू
आख़िर हवा चलेगी अभी से बिखर न जा
लोगों ने कर लिए हैं मुक़फ़्फ़ल मसाम भी
ख़ालिद मिसाल-ए-दस्त-ए-सबा दर-ब-दर न जा
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