फिर कोई ख़्वाब तिरे रंगों से जुदा नहीं देखा
फिर कोई ख़्वाब तिरे रंगों से जुदा नहीं देखा
क्या कुछ देख लिया था हम ने क्या नहीं देखा
अव्वल-ए-इश्क़ की साअत जा कर फिर नहीं आई
फिर कोई मौसम पहले मौसम सा नहीं देखा
सब ने देखा था तिरा हम को रुख़्सत करना
हम ने जो मंज़र देखने वाला था नहीं देखा
बे-कल बे-कल रहना दीद का फल तो नहीं है
देखने वाली आँख ने जाने क्या नहीं देखा
हम जिसे पर्दा-ए-ख़्वाब में रह कर देख रहे हैं
जागने वालो तुम ने भी देखा या नहीं देखा
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