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है सफ़र में कारवान-बहर-ओ-बर किस के लिए - मोहम्मद ख़ालिद कविता - Darsaal

है सफ़र में कारवान-बहर-ओ-बर किस के लिए

है सफ़र में कारवान-बहर-ओ-बर किस के लिए

हो रहा है एहतिमाम-ए-ख़ुश्क-ओ-तर किस के लिए

किस की ख़ातिर ज़ाइक़ों की सख़्तियों में हैं समर

और झुक जाती है शाख़-ए-बारवर किस के लिए

किस की ख़ातिर हैं बदलते मौसमों की बारिशें

दिल ग़मीं किस के लिए है चश्म तर किस के लिए

रत-जगों में गूँजने वाली सदाएँ किस की हैं

है हुनर किस के लिए अर्ज़-ए-हुनर किस के लिए

किस ने ज़ख़्म-ए-ना-रसी से भर दिए हैं रास्ते

चारासाज़ी किस लिए है चारागर किस के लिए

ला-मकाँ में कौन रहता है मकाँ में क्या नहीं

दश्त हैं किस के लिए दीवार-ओ-दर किस के लिए

किस ने रक्खी हैं हर इक मंज़र में रंगीं साअतें

ख़ल्क़ फ़रमाए गए हैं बे-बसर किस के लिए

कौन सुनता है हवाओं की अजब सरगोशियाँ

और जाती हैं हवाएँ दर-ब-दर किस के लिए

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