ग़ज़ल अपनी रिवायत है ग़ज़ल तहज़ीब से होगी
ग़ज़ल अपनी रिवायत है ग़ज़ल तहज़ीब से होगी
किसी की हुस्न-आराई किसी तक़रीब से होगी
बहम हैं बिजलियाँ आतिश शरारे नौ-ब-नौ तूफ़ाँ
मिरे ख़िर्मन की बर्बादी बड़ी तरकीब से होगी
अजब तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है दिखा कर आग इस दिल को
वो फ़रमाते हैं ये आतिश-ज़नी तख़रीब से होगी
कफ़-ए-सैय्याद दाम-ए-ख़ुश-नुमा ज़ंजीर ओ ज़िंदाँ तक
असीरी उम्र की होगी मगर तरतीब से होगी
तक़ाज़ा-ए-मोहब्बत है कि तज़ईन-ए-गुलिस्ताँ हो
जो दस्त-ए-ग़ैर से होगी न कुछ तंसीब से होगी
मिरी दीवानगी पर वो पशेमाँ हो गए होंगे
उन्हें भी तो परेशानी किसी ताजीब से होगी
मोहब्बत में किसी पर्दा-नशीं से गुफ़्तुगू यारो
कभी रम्ज़ ओ किनाए से कभी तश्बीब से होगी
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