Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_9ec7af8eb296985e3687cfa345deeb1d, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
शब-ए-हिज्राँ - मोहम्मद इज़हारुल हक़ कविता - Darsaal

शब-ए-हिज्राँ

हवा बे-मेहर थी उस रात ठंडी और कटीली

साँस लेना सर से ऊँची लहर से टक्कर लगाना था

सदा कोई नहीं थी

सम्त की तअय्युन मुश्किल थी

नशेबी बस्तियों में रास्ते इक दूसरे में ख़त्म होते थे

तुझे क्या अलम है वो रात सर-ता-पा शब-ए-हिज्राँ हमारे हक़ में कैसी थी

लकीरें हाथ की ना-मेहरबाँ

माथा मईशत की तरह तंग और घर बरकत से चेहरा नूर से आरी

गुनाहों का क्या मक़्दूर था अच्छा अमल भी हो नहीं पाया

किसी बुढ़िया की कुटिया में दिया झाड़ू

न रोए बा-वज़ू हो कर

न कुछ तरतील न तहलील

होंटों से दुआ ही फूटती लेकिन हमारी तीरा रोज़ी रात के हर ब्रिज पर

बेदार और चौकस थी

गाहे गाहे इक ललकार आती थी अज़ल की लौह से

और हम मनों मिट्टी के नीचे सहम जाते थे

हवा बे-मेहर थी उस रात ठंडी कटीली

साँस लेना सर से ऊँची लहर से टक्कर लगाना था

(711) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Shab-e-hijran In Hindi By Famous Poet Mohammad Izhar Ul Haq. Shab-e-hijran is written by Mohammad Izhar Ul Haq. Complete Poem Shab-e-hijran in Hindi by Mohammad Izhar Ul Haq. Download free Shab-e-hijran Poem for Youth in PDF. Shab-e-hijran is a Poem on Inspiration for young students. Share Shab-e-hijran with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.