हम से करते हो बयाँ ग़ैरों की यारी आन कर
हम से करते हो बयाँ ग़ैरों की यारी आन कर
रह गई है आप की ये दोस्त-दारी आन कर
हम को आने से तुम्हारी बज़्म के क्या था हुसूल
देख लेते थे मगर सूरत तुम्हारी आन कर
रूठने पर मेरे क्या लाज़िम था हो जाना ख़फ़ा
बल्कि करनी थी तुम्हें ख़ातिर हमारी आन कर
ता'न-ए-बद-ख़्वाहाँ से तू इक-दम न पावेगा क़रार
की जो तेरे दर पे हम ने बे-क़रारी आन कर
था अगरचे ग़श में मजनूँ लेकिन आँखें खुल गईं
सर पे उस के जिस घड़ी लैला पुकारी आन कर
जिस जिगर-कुश्ता का तेरे लाशा था ख़ूँ में पड़ा
ख़ूब सा रोया वहाँ अब्र-ए-बहारी आन कर
मैं भी क्या बरगश्ता-ताले' हूँ कि 'तन्हा' रात को
फिर गई दर तक मिरे उस की सवारी आन कर
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