हाल-ए-दिल अपना लिखूँ हाल तुम्हारा लिक्खूँ
हाल-ए-दिल अपना लिखूँ हाल तुम्हारा लिक्खूँ
तू ही बतला कि तिरे ख़त में मैं क्या क्या लिक्खूँ
उन को अपनाने की सब कोशिशें नाकाम हुईं
बाज़ी-ए-इश्क़ में अब अपने को हारा लिक्खूँ
जिस में तस्वीर नज़र आती थी हर वक़्त तिरी
आइना टूट गया अब वो तुम्हारा लिक्खूँ
गर गरेबाँ ही सलामत है न दामन उस का
कैसी हालत में है दीवाना तुम्हारा लिक्खूँ
'फ़ैज़' हालात हैं जो कुछ भी करम है उस का
क्यूँ न हर हाल को एहसान तुम्हारा लिक्खूँ
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