रस-भरे होंट
रस-भरे होंट
फूल से हल्के
जैसे बिल्लोर की सुराही में
बादा-ए-आतिशीं-नफ़्स छलके
जैसे नर्गिस की गोल आँखों से
एक शबनम का अर्ग़वाँ क़तरा
शफ़क़-ए-सुब्ह से दरख़्शंदा
धीरे धीरे सँभल सँभल ढलके
रस-भरे होंट यूँ लरज़ते हैं.....!
यूँ लरज़ते हैं जिस तरह कोई
रात दिन का थका हुआ राही
पाँव छलनी निगाह मुतज़लज़ल
वक़्त सहरा-ए-बे-कराँ कि जहाँ
संग-ए-मंज़िल-नुमा न आज न कल.....
दफ़अतन दूर.....! दूर..... आँख से दूर
शफ़क़-ए-शाम की सियाही में
क़ल्ब की आरज़ू-निगाही में
फ़र्श से अर्श तक झलक उट्ठे
एक धोका..... सराब..... मंबा-ए-नूर.....!
रस-भरे होंट देख कर 'तासीर'
रात दिन के थके हुए राही
यूँ तरसते, हैं यूँ लरज़ते हैं.....!
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