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ऐ हक़-सरिश्त आइना-ए-हक़-नुमा हैं हम - मोहम्मद दीन तासीर कविता - Darsaal

ऐ हक़-सरिश्त आइना-ए-हक़-नुमा हैं हम

ऐ हक़-सरिश्त आइना-ए-हक़-नुमा हैं हम

ऐ इब्तिदा-ए-कार तिरी इंतिहा हैं हम

तुम क्या हो इश्वा-कारी-ए-तख़ईल और क्या

हम क्या हैं बाज़-गश्ता तुम्हारी सदा हैं हम

ज़ेहन-ए-अज़ल में एक तसव्वुर का इहतिज़ाद

मद्धम सी एक नग़्मा-ए-कुन की नवा हैं हम

कुछ भी नहीं जो तू न हो तू है तो क्या नहीं

सब कुछ भी हम हैं और जो सोचें तो क्या हैं हम

आ ऐ नक़ाब-पोश-ए-अज़ल आ क़रीब-तर

पर्दा उलट के आ कि तेरा मुद्दआ' हैं हम

कैसी तलाश-ए-राह कि मंज़िल में आप हैं

कैसी रजा-ओ-बीम कि ख़ुद मुद्दआ' हैं हम

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