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तरक़्क़ी का वो दा'वा कर रहा है - मोहम्मद अज़हर शम्स कविता - Darsaal

तरक़्क़ी का वो दा'वा कर रहा है

तरक़्क़ी का वो दा'वा कर रहा है

मगर हर शख़्स फ़ाक़ा कर रहा है

वो देखे है मकानात-ए-बुलंदी

वो उजड़े घर से पर्दा कर रहा है

मफ़ाद-ए-अव्वलिय्यत चाहने में

वो इंसानों का सौदा कर रहा है

बराबर में कमी बेशी को रख कर

तरक़्क़ी का इरादा कर रहा है

दुहाई दे के वो जम्हूरियत की

निज़ाम-ए-ख़्वाब रुस्वा कर रहा है

हुए हुक्काम अब सारे लुटेरे

दिल-ए-हालात नाला कर रहा है

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