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सर्कस - मोहम्मद असदुल्लाह कविता - Darsaal

सर्कस

शहर में सर्कस आया है

खेल तमाशे लाया है

हाथी ऊँट और घोड़े हैं

सब ही यूँ तो भगोड़े हैं

सब को पकड़ कर लाया है

शहर में सर्कस आया है

उड़ती उछलती कार भी है

खेलों की भर-मार भी है

सारे खिलाड़ी और जोकर

तार पे चलते हैं सरसर

शहर उमड कर आया है

शहर में सर्कस आया है

शेर भी है और बकरी भी

कुत्तों की इक टोली भी

एक बड़ा सा भालू है

कुछ उस के हम-जोली भी

भान-मती का कुम्बा है

जो सर्कस ने जोड़ा है

हाथी पूजा-पाठ करे

बंदर बंदर-बाँट करे

भालू नाच दिखाता है

तोता तोप चिल्लाता है

सभी दिखाते हैं कर्तब

जोकर अब गिरा या तब

सब के मन को भाया है

शहर में सर्कस आया है

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