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एक इत्तिफ़ाक़ी मौत की रूदाद - मोहम्मद अनवर ख़ालिद कविता - Darsaal

एक इत्तिफ़ाक़ी मौत की रूदाद

सरासर इत्तिफ़ाक़ी मौत थी

उस ने कहा था मुझ को जाना है

सो वो ऐसे गया जैसे ज़मीं से घास जाती है

सरासर इत्तिफ़ाक़न

पाँव चलने के लिए होते हैं

इतना तो सभी तस्लीम करते हैं

तो ऐसे में अगर मिट्टी की उर्यानी शिकायत-गर भी हो जाए

तो उस पर और मिट्टी डाल देते हैं

सो हम ने डाल दी मिट्टी-पे-मिट्टी

इत्तिफ़ाक़न

ये तो होता है

सरासर इत्तिफ़ाक़ी हादिसा था

उस ने ख़ुद लिखा था

दुनिया बीच आना इत्तिफ़ाक़ी अम्र है

जाना सरासर हादसाती

तो उस पर तो अदालत ने भी कुछ हुज्जत नहीं की

उस ने ख़ुद लिखा था

हुज्जत नफ़सियाती आरिज़ा है

सो अदालत ने बिला तफ़तीश उसे जाने दिया

जैसे ज़मीं से घास जाती है

सरासर इत्तिफ़ाक़न

बिल-उमूम ऐसा ही होता है

हमेशा इत्तिफ़ाक़न

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