बात नहीं हो सकती
वो जो कहते हैं किसी टेढ़ बिना कोई बात नहीं हो सकती
सो आन की आन में डोर पलट कर माही-गीर पे आन पड़ी
उन्ही मौसम में कोई तुम सा दरिया पार से आया था
और सारी बस्ती रोई थी
उस दिन बस्ती में रोने वालों का दिन था और तुम ने कहा था
ये लोग समुंदर मथ कर पीते थे अब रोते हैं
और तुम ने कहा था
उन लोगों से तो साहिल पर खो जाने वाले बच्चे अच्छे हैं
जो रेत पे खेलते खेल को पानी कर देते हैं
सो टेढ़ में तुम ने बात कही
उन लोगों से तो साहिल पर खो जाने वाले बच्चे अच्छे हैं
वो जो कहते हैं हर बात में कोई टेढ़ सी हो तो बेहतर है
उन लोगों से सर-ए-शाम मिलो तो बात नहीं हो सकती
और दिन में उन के साथ कई दोराहे चलते हैं
और रात में उन के घर बस नींद का सौदा हो सकता है
और नींद कद्दू की बेल है सूख गई तो साहिल पर पैग़म्बर बचा रह जाता है
सो टेढ़ में तुम ने बात कही
अब पैग़म्बर से बात नहीं हो सकती
वो जो कहते हैं किसी टेढ़ बिना कोई बात नहीं हो सकती
सो आन की आन में डोर पलट कर माही-गीर पर आन पड़ी
(498) Peoples Rate This