क्या जामा-ए-फुल-कारी उस गुल की फबन का था
क्या जामा-ए-फुल-कारी उस गुल की फबन का था
जो तख़्ता-ए-दामन था तख़्ता वो चमन का था
हम आगो ही समझे थे तुम घर को सुधारोगे
जूँ सुब्ह गजर बाजा माथा वहीं ठंका था
मीना में न हो जल्वा वो बादा-ए-गुल-गूँ का
जामे में जो कुछ यारो रंग उस के बदन का था
नर्गिस को किया ऐसा बीमार उन आँखों ने
ढलका ही नज़र आया गर्दन का जो मनका था
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