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किस काफ़िर-बे-मेहर से दिल अपना लगा है - मोहम्मद अमान निसार कविता - Darsaal

किस काफ़िर-बे-मेहर से दिल अपना लगा है

किस काफ़िर-ए-बे-मेहर से दिल अपना लगा है

जिस में कि मोहब्बत न मुरव्वत न वफ़ा है

बे-कार कभू रात को भी मैं नहीं रहता

जूँ शम्अ मुझे ता-ब-सहर मश्क़-फ़ना है

क्या वज़्अ बयाँ कीजिए उस शोख़ की अपने

लड़ने को क़यामत है झगड़ने को बला है

क्या क़हर है हम देख के ख़ुश होते हैं जिस को

सो उस की ये सूरत है कि सूरत से ख़फ़ा है

जूँ जूँ नहीं देखे है 'निसार' अपने सनम को

तूँ तूँ यही कहता है ख़ुदा जानिए क्या है

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