यकुम जनवरी
फिर इक
सर्द ठिठुरा हुआ दिन
दबे पाँव चलता हुआ
बॉलकनी से
कमरे में आया
मुझे अपने बिस्तर में
दुबका हुआ देख कर
मुस्कुराया
और आराम-कुर्सी पे बैठा
घड़ी गोद में रख के
काँटा घुमाया
थके पाँव चलता हुआ
बॉलकनी को लौटा
तो चारों तरफ़ से
अँधेरों ने बढ़ के
उसे फाड़ खाया
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