नौहा
न मरने का डर है
न जीने में कोई मज़ा है
ख़ला ही ख़ला है
हर इक चीज़ जैसे
अंधेरे में गुम हो गई है
उजाले की इक इक किरन खो गई है
हर इक आरज़ू सो गई है
गुनह में भी अब कोई लज़्ज़त नहीं है
वो दोज़ख़ नहीं
अब वो जन्नत नहीं है
कोई भी नहीं है
बस अब मैं हूँ
और मेरा सुनसान दिल है
ख़ुदा के न होने का ग़म
किस क़दर जाँ-गुसिल है
(465) Peoples Rate This