रात अब सियानी हो गई है
गुड़िया खो जाए
तो रोती नहीं!
बुख़ार में मुब्तला
बूढ़े आसमान में
इतनी भी सकत नहीं
कि उठ कर वज़ू करे
सूरज ख़ूँ-ख़्वार बिल्ले की तरह
एक एक चीज़ पर
अपने नाख़ुन तेज़ करता है!
हवा का झोंका
चूहे की मानिंद
बिल से बाहर आते डरता है!
वक़्त आज कल
दोज़ख़ के आस पास से गुज़रता है!