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और फिर यूँ होगा - मोहम्मद अल्वी कविता - Darsaal

और फिर यूँ होगा

हाँ ये आख़िरी सदी है

इस के इख़्तिताम पर

ये ज़मीं

सूरज की गिरफ़्त से निकल कर

अंधेरों में डूबती चली जाएगी

और किसी तारीक सय्यारे से टकरा कर

टुकड़े टुकड़े हो जाएगी!

और फिर यूँ होगा

ज़मीं के इक टुकड़े पर

इक दरख़्त होगा

और उस की छाँव में

इक भाई

और इक बहन

इक दूसरे से लिपट कर

सो रहे होंगे

और शैतान

उन के तलवे चाट रहा होगा

और ज़मीं का वो टुकड़ा

इक नए सूरज के गिर्द

चक्कर काट रहा होगा!!

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