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वो मेरे साथ आने पे तय्यार हो गया - मोहम्मद अल्वी कविता - Darsaal

वो मेरे साथ आने पे तय्यार हो गया

वो मेरे साथ आने पे तय्यार हो गया

सोते से हड़बड़ा के मैं बेदार हो गया

उस के हसीन चेहरे पे ख़त ख़ूब था मगर

दाढ़ी मुँडा के और तरह-दार हो गया

बत्ती बुझा के हीरो हीरोइन लिपट गए

क़िस्सा बहुत ही फिर तो मज़ेदार हो गया

क़ातिल फ़रार हो गया पुलिस के आने तक

इक राह-रौ बेचारा गिरफ़्तार हो गया

उन को गुनाह करते हुए मैं ने जा लिया

फिर उन के साथ मैं भी गुनहगार हो गया

मर्दांगी का उस की बहुत शोर था मगर

आई शब-ए-विसाल तो बीमार हो गया

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