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सातवीं मंज़िल से कूदा चाहिए - मोहम्मद अल्वी कविता - Darsaal

सातवीं मंज़िल से कूदा चाहिए

सातवीं मंज़िल से कूदा चाहिए

ख़ुद-कुशी करने को और क्या चाहिए

अपने हाथों अपनी आँखें फोड़ कर

चार-सू अपने को देखा चाहिए

आइने में कोई रहता है ज़रूर

कौन है चुपके से पूछा चाहिए

नींद के कमरे में दम घुटने लगा

ख़्वाब की खिड़की को खोला चाहिए

'फ़ैज़'-साहिब शेर क्यूँ कहते नहीं

'फ़ैज़'-साहिब शेर कहना चाहिए

तुम से बीवी को शिकायत हो अगर

तो 'सलीम'-अहमद को पढ़ना चाहिए

आओ 'अल्वी' उस के घर की बत्तियाँ

बुझ गईं अब घर को चलना चाहिए

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