Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_497e20e34f28b7f4a93f823293f8fc31, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं - मोहम्मद अल्वी कविता - Darsaal

ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं

ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं

टेबल पर सर रख कर सो जाता हूँ मैं

गली गली मैं अपने आप को ढूँडता हूँ

इक इक खिड़की में उस को पाता हूँ मैं

अपने सब कपड़े उस को दे आता हूँ

उस का नंगा जिस्म उठा लाता हूँ मैं

बस के नीचे कोई नहीं आता फिर भी

बस में बैठ के बेहद घबराता हूँ मैं

मरना है तो साथ साथ ही चलते हैं

ठहर ज़रा घर जा के अभी आता हूँ मैं

गाड़ी आती है लेकिन आती ही नहीं

रेल की पटरी देख के थक जाता हूँ मैं

'अल्वी' प्यारे सच सच कहना क्या अब भी

उसी को रोता देख के याद आता हूँ मैं

(672) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Office Mein Bhi Ghar Ko Khula Pata Hun Main In Hindi By Famous Poet Mohammad Alvi. Office Mein Bhi Ghar Ko Khula Pata Hun Main is written by Mohammad Alvi. Complete Poem Office Mein Bhi Ghar Ko Khula Pata Hun Main in Hindi by Mohammad Alvi. Download free Office Mein Bhi Ghar Ko Khula Pata Hun Main Poem for Youth in PDF. Office Mein Bhi Ghar Ko Khula Pata Hun Main is a Poem on Inspiration for young students. Share Office Mein Bhi Ghar Ko Khula Pata Hun Main with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.