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नींद रातों की उड़ा देते हैं - मोहम्मद अल्वी कविता - Darsaal

नींद रातों की उड़ा देते हैं

नींद रातों की उड़ा देते हैं

हम सितारों को दुआ देते हैं

रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू

ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं

अब के हम जान लड़ा बैठेंगे

देखें अब कौन सज़ा देते हैं

हाए वो लोग जो देखे भी नहीं

याद आएँ तो रुला देते हैं

दी है ख़ैरात उसी दर से कभी

अब उसी दर पे सदा देते हैं

आग अपने ही लगा सकते हैं

ग़ैर तो सिर्फ़ हवा देते हैं

कितने चालाक हैं ख़ूबाँ 'अल्वी'

हम को इल्ज़ाम-ए-वफ़ा देते हैं

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