मैं अपना नाम तिरे जिस्म पर लिखा देखूँ
मैं अपना नाम तिरे जिस्म पर लिखा देखूँ
दिखाई देगा अभी बत्तियाँ बुझा देखूँ
फिर उस को पाऊँ मिरा इंतिज़ार करते हुए
फिर उस मकान का दरवाज़ा अध-खुला देखूँ
घटाएँ आएँ तो घर घर को डूबता पाऊँ
हवा चले तो हर इक पेड़ को गिरा देखूँ
किताब खोलूँ तो हर्फ़ों में खलबली मच जाए
क़लम उठाऊँ तो काग़ज़ को फैलता देखूँ
उतार फेंकूँ बदन से फटी पुरानी क़मीस
बदन क़मीस से बढ़ कर कटा-फटा देखूँ
वहीं कहीं न पड़ी हो तमन्ना जीने की
फिर एक बार उन्हीं जंगलों में जा देखूँ
वो रोज़ शाम को 'अल्वी' इधर से जाती है
तो क्या मैं आज उसे अपने घर बुला देखूँ
(583) Peoples Rate This