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हर इक झोंका नुकीला हो गया है - मोहम्मद अल्वी कविता - Darsaal

हर इक झोंका नुकीला हो गया है

हर इक झोंका नुकीला हो गया है

फ़ज़ा का रंग नीला हो गया है

अभी दो चार ही बूँदें गिरीं हैं

मगर मौसम नशीला हो गया है

करें क्या दिल उसी को माँगता है

ये साला भी हटीला हो गया है

ख़बर क्या थी कि नेकी बाँझ होगी

बदी का तो क़बीला हो गया है

ख़ुदा रक्खे जवानी आ गई है

गुनह बाँका-सजीला हो गया है

न जाने छत पे क्या देखा था 'अल्वी'

बेचारा चाँद पीला हो है

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