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तिरी सूरत मुझे बताती है - मोहम्मद अली साहिल कविता - Darsaal

तिरी सूरत मुझे बताती है

तिरी सूरत मुझे बताती है

याद मेरी तुझे भी आती है

उस के इक बार देखने की अदा

दिल में सौ हसरतें जगाती है

मेरे दिल में वो आए हैं ऐसे

जैसे आँगन में धूप आती है

ख़्वाब में जब भी देखता हूँ उसे

नींद आँखों से रूठ जाती है

अपनी मर्ज़ी से हम नहीं चलते

कोई ताक़त हमें चलाती है

हम हैं तहज़ीब के अलम-बरदार

हम को उर्दू ज़बान आती है

मैं तो साहिल हूँ मौज दरिया की

मुझ को ख़ुद ही गले लगाती है

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