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जुस्तुजू तेरी तरह ग़म तिरी क़ुर्बत क्या है - मोहम्मद अली साहिल कविता - Darsaal

जुस्तुजू तेरी तरह ग़म तिरी क़ुर्बत क्या है

जुस्तुजू तेरी तरह ग़म तिरी क़ुर्बत क्या है

सोचता रहता हूँ आख़िर ये मोहब्बत क्या है

हम ने लोगों से बहुत ज़िक्र सुना था लेकिन

उन को देखा तो ये जाना कि क़यामत क्या है

वहशी दुनिया है तिरा प्यार नहीं समझेगी

अपने जज़्बात दिखाने की ज़रूरत क्या है

ये भी क़ुदरत का करिश्मा है कि दुनिया में कोई

आज तक ये न समझ पाया कि क़ुदरत क्या है

तू ने दुनिया की हवस दिल में बसा रक्खी है

तेरे ईमान से बढ़ कर तिरी दौलत क्या है

इक तिरी ज़ात से क़ाएम है वजूद इंसाँ का

वर्ना इंसान की दुनिया में हक़ीक़त क्या है

जिस्म का हुस्न तिरी रूह तलक है साहिल

ये नहीं हो तो ये मिट्टी की इमारत क्या है

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