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होश खो कर जोश में कुछ इस तरह मैं बह गया - मोहम्मद अली साहिल कविता - Darsaal

होश खो कर जोश में कुछ इस तरह मैं बह गया

होश खो कर जोश में कुछ इस तरह मैं बह गया

क्या मुझे कहना था उस से और क्या क्या कह गया

उस की जानिब देख कर आख़िर ये मुझ को क्या हुआ

एक सच होंटों पे मेरे आते आते रह गया

जो असासा ज़िंदगी का उस ने जोड़ा उम्र भर

मौत का सैलाब जब आया तो सब कुछ बह गया

ज़ुल्म की बुनियाद पर उस ने बनाया था महल

सब्र की बस एक ही ठोकर से वो भी ढह गया

तुम ने तो आँसू ही देखे हैं तुम्हें मालूम क्या

दर्द का दरिया मिरी आँखों से हो कर बह गया

दोस्ती क़ाएम रहे हर हाल में ये सोच कर

दोस्तों ने जो दिए वो ज़ख़्म हँस कर सह गया

ज़िंदगी ने हर क़दम पर ने'मतें तक़्सीम कीं

और 'साहिल' उम्र के ज़ेर-ओ-ज़बर में रह गया

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