ग़ुर्बत का अब मज़ाक़ उड़ाने लगे हैं लोग
ग़ुर्बत का अब मज़ाक़ उड़ाने लगे हैं लोग
दौलत को सर का ताज बताने लगे हैं लोग
तहज़ीब-ए-शहर कितनी बदल दी है वक़्त ने
अपनी रिवायतों को भुलाने लगे हैं लोग
अल्लाह उन की अक़्ल का पर्दा ज़रा हटा
फिर अपनी बेटियों को जलाने लगे हैं लोग
हद हो चुकी है अब तो मिरे इंकिसार की
कमतर समझ के मुझ को सताने लगे हैं लोग
इल्ज़ाम सारा अपने मुक़द्दर पे डाल कर
नाकामियों को अपनी छुपाने लगे हैं लोग
सच्चाई का अलम मिरे हाथों में देख कर
बस्ती में कितना शोर मचाने लगे हैं लोग
मौजों से लड़ते लड़ते जो साहिल तक आ गया
एहसान उस पे अपना जताने लगे हैं लोग
(5775) Peoples Rate This