तन्हाई के सब दिन हैं तन्हाई की सब रातें
तन्हाई के सब दिन हैं तन्हाई की सब रातें
अब होने लगीं उन से ख़ल्वत में मुलाक़ातें
हर आन तसल्ली है हर लहज़ा तशफ़्फ़ी है
हर वक़्त है दिल-जूई हर दम हैं मुदारातें
मेराज की सी हासिल सज्दों में है कैफ़िय्यत
इक फ़ासिक़-ओ-फ़ाजिर में और ऐसी करामातें
बैठा हुआ तौबा की तू ख़ैर मनाया कर
टलती नहीं यूँ 'जौहर' इस देस की बरसातें
(1742) Peoples Rate This