कहीं था मैं मुझे होना कहीं था
कहीं था मैं मुझे होना कहीं था
मैं दरिया था मगर सहरा-नशीं था
शिकस्त-ओ-रेख़्त कैसी फ़त्ह कैसी
कि जब कोई मुक़ाबिल ही नहीं था
मिले थे हम तो मौसम हँस दिए थे
जहाँ जो भी मिला ख़ंदाँ-जबीं था
सवेरा था शब-ए-तीरा के आगे
जहाँ दीवार थी रस्ता वहीं था
मिली मंज़िल किसे कार-ए-वफ़ा में
मगर ये रास्ता कितना हसीं था
जिलौ में तिश्नगी आँखों में साहिल
कहीं सीने में सहरा जा-गुज़ीं था
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